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Sunday, November 2, 2008

देखते -देखते

जागते हुए सूरज ने देखा -आदमी छह फुट से एक फुट होता हुआ
अपनी उबासी तक रह गया है
धुँआ धरती से उठा -आसमान में फैल गया
शोर तेज हुआ तो -आवाज बैठ गई
टहनी पर बैठे पंछी का गीत -कंठ से आते खून में समाया
और पत्ते पत्ते पर जा लगा
तन की खुशी आत्मा का पर्याय नहीं हो पायी
चलता हुआ वक्त ,सरकते हुए पाँव -छाती पर आ कर टिक गए

फूल और तितलियों का सम्बन्ध -झरने की फुहार
पानी में तैरती -मछलियों के रंग -चरवाहे की बांसुरी

सब के सब
आँख के सफेद मोतिये के आगे
हां से न हो गए

हाथो पर टिकती टिकती बिखर गई -सपन कांच की चूडिया
और ग्लोब पर बैठी -आण्विक आँख

यह सारा का सारा देखना बहुत मुश्किल था
देखते देखते सूरज -समंदर में उतर गया
साभार

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