Pages

Monday, October 27, 2008

यथार्थ


जिंदगी के रेगिस्तान में
जीवन का सार देखा
रेतीली तपन में -एक नन्हे कैक्टस ने -उगा लिए अपने पर चंद कांटे
सूरज उसका कुछ न बिगाड़ सका

पास ही दूब का एक पौधा -पड़ा था बेदम -आखिरी साँसों के साथ
उसके पास नहीं थी -काँटों की सभ्यता ।

No comments:

Post a Comment

अपनी राय देकर कृपया मुझे प्रोत्साहित करे