Friday, October 31, 2008
बेटियाँ
ओस की एक बूंद सी होती है बेटियाँ -स्पर्श खुरदरा हो तो रोती है बेटियाँ ॥
रोशन करेगा बेटा तो एक ही कुल को -दो दो कुल की लाज होती है बेटियाँ ॥
कोई नहीं है दोस्तों ,एक दुसरे से कम -हीरा अगर है बेटा तो ,मोती है बेटियाँ
काँटों की राह पे ये ख़ुद ही चलती रहेगी -औरो के लिए फूल बोती है बेटियाँ ॥
साभार
मेला-इन्द्र धनुषो का
नहीं यदि इन्द्रधनुषों का -यहाँ मेला लगा होता
न जाने तुम कहाँ होती -न जाने मै कहाँ होता
नहीं उलझन खुली होती -न ये धागे जुड़े होते
किन्ही अनजान गलियों में -भटकने को मुडे होते
न मंजिल का पता ये -मौन चौराहे बता पाते
न नीली लाल पीली बत्तियों का सिलसिला होता
न स्वर की गंध से वातावरण -महका हुआ होता
लहू की आग से जीवन नहीं दहका हुआ होता
अमर बेले लिपट तुमसे -हवा में झूमती होती
पुता सिन्दूर से मै भी -मरा सा देवता होता
कहीं गंगा मरुस्थल में -हिरन सी हांफती होती
पहाडो में रुकी यमुना -तड़पती कांपती होती
अंधेरों की गुफाओं में -कहीं सूरज छिपा होता
बला की भीड़ में खोया -कहीं पर चंद्रमा होता
नहीं ये हौसले होते -बवंडर को झुकाने के
जमीं पर आसमानों के- सितारे तोड़ लाने के
नहीं तुम मेघ बनकर प्यास- धरती की बुझा पाती
नहीं मै ही हिमालय बन -उठाये सर खड़ा होता ॥
साभार
लेबल:
इन्द्रधनुष,
चौराहे,
मंजिल,
सिन्दूर,
सिलसिला
Monday, October 27, 2008
यथार्थ
Friday, October 24, 2008
मेरा प्यार
मै तुम्हे इतना प्यार करता हूँ
जितना जड़े मिटटी से प्यार करती है
जितना चिडिया खुले आकाश से
और मछलियाँ पानी से प्यार करती है
तुम्हारे जिस्म और मन की गहराई तक
उतरती चली गई है मेरी जड़े
तुम वह धरती हो
जो मुझे धारण करती है -दिंगत की तरह
तुम वह लता हो
जो मुझे सिद्ध करती है
वसंत की तरह
तुम मेरे लिए
धूप की नरम नरम गोद हो
मै तुम्हे इतना प्यार करता हूँ -जितना जड़े मिटटी से प्यार करती है
चिडिया खुले आकाश से
और मछलिया पानी से प्यार करती है - लेकिन वे इसे शब्दों में कहती नही है ।
Subscribe to:
Posts (Atom)